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Friday, October 12, 2012

FDI बनाम आम जनता......

पिछले बुधवार को मेरे घनिष्ठ मित्र परेश जोकि एक बहुत अच्छे लेखक हैं और हिंदी एवं मराठी फिल्मो में अपनी कलम के जलवे दिखा चुके हैं, मेरे पास आये हुवे थे, किसी फिल्म की स्क्रिप्ट को ले कर। बात करते करते बात चल गयी बहुचर्चित FDI के बारे में। बस फिर क्या था? हो गए 3 घंटे। सोचा के इतनी रोचक बात चीत का एक छोटा सा अंश एक पोस्ट के रूप में भी लिख दिया जाए। तो परेश ने ही ये पोस्ट लिखी जिसे मैं आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

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हम भारतीयो की याददाश्त हमेशा से ही बुरी रही है, जिसका फायदा हमारे पोलिटिशियन हमेशा से ही उठाते आ रहे हैं. अगर आपके घर मैं कुछ महीनो पुराने न्यूजपेपर्स पड़े हो तो पता चलेगा की कितने सारे घोटाले एक के बाद एक आए और कितनो को हम भूल गए। वजह हैं हमारी मिडिया और आम जनता। जब भी कोई नया घोटाला या विवाद सामने आता हैं तब हम यही सोचते हैं इससे हमें क्या फर्क पडता हैं। मसलन अगर हम देखे तो (मैंने कई लोगो को यह बात करते सुना हैं) की २जी , कोमनवेल्थ या कोलगेट से हमारा क्या लेनादेना? यह भ्रष्टाचार होता रहता हैं हमें क्या !!!!! अभी रॉबर्ट वडेरा का विवाद जोरो पर चल रहा हैं (सच मैं इससे हमारा कोई लेनादेना नहीं हैं) पर क्या आपको याद हैं इस विवाद से पहेले कोनसा मुद्दा मिडिया मैं जोरो पर था और आज इसके बारे मैं कोई भी बात तक नहीं कर रहा ? यह ऐसा मुद्दा हैं जिसका हम और आपसे सीधा सरोकार हैं, यह मुद्दा हैं FDI का याने विदेशी पूंजी निवेश का।


कुछ लोग कहते हैं (सरकार मैं शामिल) के इससे हमारे अर्थतंत्र का विकास होगा और हमारे यहाँ ज्यादा नोकरियो के अवसर बढ़ेंगे, विदेशी मुद्रा आएगी तो रूपए के मूल्य मैं स्थिरता आएगी, किसानो को उनके उत्पाद की सही कीमत मिलेगी। और कुछ लोग कहते हैं (विपक्ष) जिन कंपनियों को यह विदेशी पूंजी निवेश के नाम पर आमंत्रित किया जा रहा हैं वह कंपनिया तो अपने देश मैं ही सही तरीके से चल नहीं रही, किसानो को लुट लेंगी, और छोटे किराना व्यापारी खत्म हो जाएँगे।

मैं कोई अर्थशास्त्री या दूरद्रष्टि रखने वाला राजनीतिज्ञ नहीं हू के यह सभी मुद्दे किस हद तक सही या गलत हैं उस का फैसला करू। मैं तो बस एक आम भारतीय की तरह सोचना चाहता हु तो मुझे यही दिखाई देता हैं की इन सभी मुद्दों मैं आम आदमी के बारे मैं कोई भी सोच नहीं रहा। कोई किसान तो कोई किराना व्यापारी तो कुछ लोग विदेशी निवेशको के बारे मैं सोच रहे है। पर हम आम भारतीयों का क्या?

बात करते हैं छोटे किराना व्यापारियो के बारे में तो क्या उन किरना व्यापारियोने सचमे कभी हमारे बारे मैं सोचा हैं? कई सालो से कई (सारे नहीं) दुकानदार और सब्जीवालो ने हमारे साथ क्वालिटी और क्वांटिटी के मामले मैं धोखा किया है और करते आ रहे हैं। मेरे एक मित्र के साथ हुए वाकये को अगर कुछ शब्दों मैं बताऊ तो वह कुछ यु था “वह एक दिन कोई आटा लेने एक दुकान मैं गया, जहाँ दुकानदार अपने कुछ हिसाब के काम मैं मशगुल था। मेरे मित्र के मांगने पर उसने चिल्लाकर अपने नोकर को वह आटा लाने कहा। आटे की कीमत ५० रुपये थी और मेरे मित्र ने १०० रुपये का नोट दूकानदार को दिया। अपने किसी काम मैं मशगुल दुकानदार ने ५० रुपये वापस करने के बजाय गलती से ४५० रुपये मेरे मित्र को दे दिए। मेरा मित्र इमानदार किस्म का इंसान है, तो उसने दूकानदार को ४०० रुपये वापस करते हुए कहा की गलती से आपने ज्यादा रुपये दे दिए हैं। दुकानदार ने शुक्रिया अदा किया और फिर अपने काम मैं मशगुल हो गया। मेरा मित्र आटा लेकर घर आ गया। जब माँ ने आटे  की थेली खोली तो वह उस में कीड़े पड़े हुए थे। मेरा मित्र तुरंत ही आटा बदलवाने दुकान वापस गया तो दूकानदार ने आटा बदलने से मन करा दिया और कहा आपको देखकर लेना चाहिए था। हमारे यहाँ ऐसा आटा मिलाता ही नहीं आपसे ही कुछ गलती हुई होगी। कही रख दिया होगा और न जाने क्या क्या बहाने बताए पर आटा बदलके नहीं नहीं दिया”. यह वाकया हम जैसे कई सारे लोगो के साथ हुआ होगा। हमने सालो से देखा हैं की जब भी त्यौहार का मोसम आता हैं तब बाजार से अचानक शक्कर गायब हो जाती हैं। अगर फिर भी खरीदने जाओ तो कम स्टोक का बहाना बताकर दुकानदार आपसे मुह मांगी रकम वसूल करता हैं। खुला तेल खरीदने वाले  आम गरीब ग्राहक को सिंग तेल के नाम पर पामतेल बेचा जाता हैं। मसालों मैं रंग और मिटटी की मिलावट तो आम बात हैं। मेरे घर के बगलवाले दूकानदार को तो मेने मिर्च पाउडर मैं नमक मिलाते देखा हैं। मसलन एक किलो मिर्च पाउडर मैं एक किलो नमक मिक्स करा रहा था।



अबतक खुले कई बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर भी कुछ दूध के धुले नहीं हैं। एक साधारण नियम हैं के एक्सपायर्ड हुइ  चीजों को कम्पनी बदल देती हैं और उन्हें बेचा नहीं जा सकता। पर कई डिपार्टमेंटल स्टोर एक्सपायर्ड चीजों पर नए कम कीमत का लेबल लगाकर बेचते  हैं (यह भी मेने खुद देखा हैं).


अभी कुछ दिन पहले मैंने कहीं पढ़ा था की वोल्मार्ट अपने कर्मचारियो से ठीक से बरताव नहीं कर रहा और तनख्वाह भी सही वक्त पर नहीं दे रहा। अब यह बात कितनी सच हैं और कितनी झूठ यह तो वह काम करनेवाला ही बता सकता हैं, पर क्या आपने कभी यहाँ ध्यान दिया हैं के हमारे आसपास के कई किराना की दूकानो पर मालिक अपने यहाँ काम कर रहे कर्मचारियों से किस तरह का बरताव करता हैं? छोटे छोटे गाँव से आये वह कर्मचारी सुबह शटर खुलने से लेकर रात को शटर बंद होने तक काम करते रहते हैं। मालिक की गालिया खाते हैं वह अलग और उन्हें तनख्वाह कितनी मिलाती है? यह सब जानने के बाद हम किस मुंह से वोल्मार्ट या किसी अन्य विदेशी कंपनी के बारे मैं टिपण्णी कर सकते हैं?

अभी फिलहाल तो मैं देसी दुकानदारों के सामने लाचार हू। पर सभी खराब नहीं होते। मेरी बस सरकार और विपक्ष से यही विनंती हैं के यह ग्राहक को तय करने दो की हमें कहा से खरीददारी करनी हैं और कहाँ से नहीं।

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