The Cost of Pseudo-Secularism in Current India.
खुद को शांतिदूत बनाने में , मै जीवन का सार भुला बैठा
खुद को शांतिदूत बनाने में , मै जीवन का सार भुला बैठा
दहशतगर्दो को शरण
देकर , मै अपने
घर में आग
लगा बैठा
चंद तारीफों के लालच
में, अपने पूर्वजो
के दिए संस्कारो
पे थूका
ऐसे झूठे आदर्शो
की खातिर,
मै अपना आत्मसम्मान
गँवा बैठा
सेकुलरिज्म
की टोपी की
खातिर, मै अपनी
पहचान गँवा बैठा
!
समलैंगिक अधिकारो के लिए
में घूमा मोमबत्ती
और मशालें लिए
-२
चर्च गया, मस्जिद
गया और फेसबुक
चैक-इन कर
के धर्मनिर्पेक्ष बना
लेकिन बूढ़े
माँ बाप को
मंदिर कभी ले
जाऊँ, वह संतान
धर्म मै भुला
बैठा
सेकुलरिज्म
की टोपी की
खातिर, मै अपनी
पहचान गँवा बैठा
!
राजनीती के इस
विकट खेल में,
कभी वजीर बना
कभी बना मै
प्यादा
वह तो खान
से गांधी बन
गए और मै
अपना खुद का
भी नाम भुला
बैठा
नानक और कबीर
कभी सुने नहीं
पर १००-१००
कलमे मै रट
आया
२००२ को न
भूलने दिया कभी
मैने पर एक
और १९८४ करवा
बैठा
सेकुलरिज्म
की टोपी कि
खातिर, मै अपनी
पहचान गँवा बैठा
!
~ Ratedstar
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