शिवाले की चोटी से लेके
मस्जिद के ज़ीनो तक बहता
क्या ब्राह्मण, क्या सईद
सबको निर्झर लोहित करता
व्यर्थ हुआ है जो, जीवन पदार्थ है
यह यथार्थ है ||
यक्षप्रश्न की दुविधाओ से भी विकट
जीवनचक्र की सुविधाओं से लुभाता
सतयुग के ब्रह्मपुरूषो को
कलयुग मे असहिष्णु बनाता
ऐसे बिना कर्म के फल को पाकर
हे पार्थ आज तू हुआ कृतार्थ है
यह यथार्थ है ||
रामद्वारा जाना जघन्य अपराध
और द्वारे रहीम जो बांटे प्रसाद है
नीतिशास्त्र को कलुषित करता
कैसा तेरा यह शास्त्रार्थ है ?
यह यथार्थ है ||
धर्मार्थ धर्मान्ध किया समस्त जग
ऐसे पैगम्बरों के समक्ष खुद खुदा असार्थ है|
युग और पथिक सब खप हैं गये
ज्ञानचक्षु ना खुले फिर भी
मानवता, स्वयं, परम के हेतु
धर्माग्नि मांगे आज तेरा पुरुषार्थ है |
यह यथार्थ है ||
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