वैसे बात तो पहले भी देखी पर आप सबके लिए लिख आज रहा हूँ। इंटरनेट के ज़माने में कुछ ऐसी बातें देखने को मिल रही है जिनकी कम ही लोग कल्पना करते है। एक इंडिपेंडेंट 'फिल्मकार' के बारे में पता चला जो एक एक निजी शिक्षण संस्थान के प्रमुख भी है। उनकी अपडेट्स में अमेरिका, यूरोप आदि जगह की फिल्म प्रतियोगिताओ में उनकी शार्ट फिल्म्स को मिले सम्मानो का ज़िक्र था। मैं बहुत खुश हुआ की चलो कहीं तो कुछ हट कर काम करने वालो की पूछ हो रही है और कोई तो इन अवसरों का सही लाभ उठा रहा है। पर कुछ गड़बड़ तब लगी जब खबरों की पिक्स, अपनी फोटोज तो उन्होंने डाली पर कभी अपनी शार्ट फिल्म्स के लिंकस शेयर नहीं किये। उत्सुकता वश मैंने किसी तरह उनकी दो अवार्ड विनिंग फिल्म्स देखी।
एक तुलना कर रहा हूँ बचपन के अनुभव से 2 रुपये में एक नया चूरण ट्राई करने की सोची, चूरण खरीदकर स्कूल बस में चढ़ा (ध्यान दें की दुखद अनुभव की डिटेल्स कैसे याद रहती है हम सबको) फिर चूरण चखा। ऐसा लगा की चिड़िया की बीट किसी ने फ्राई करके सुखाई और उसका चूरण बना दिया, वो स्वाद आज भी याद है। ठीक वो स्वाद ताज़ा हो गया ज़ुबान पर जब मैंने इनकी शार्ट फिल्म्स देखी। ना कोई थीम, ना मेहनत, किसी नौसिखिये से भी बदतर काम। बड़ा दुख हुआ। तो सवाल यह की फिर ये जीतें कैसे वो भी 2-3 प्रतियोगितायें (और आगे भी जीतते रहेंगे)। पहले तो ये साफ़ कर दूँ की विदेशो में हुयी हर बात बड़ी नहीं होती। इनकी किसी प्रतियोगिता में 18 प्रविष्टियाँ आयीं किसी में 26, ऊपर से ऑनलाइन वोटिंग द्वारा निर्णय जिसमे इन्होने बोट्स यानी फेक प्रोफाइल्स से खुद को वोटिंग करवायी और मुश्किल से दूसरा, तीसरा स्थान प्राप्त किया। वहाँ से मिली इनामी राशि से इन्होने वो फेक वोटिंग की लागत निकाल ली।
बात यहाँ ख़त्म नहीं हुयी फिर लोकल मीडिया को बताया की जी "अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर मेरी फिल्म जीती।" बाकी मीडिया का आप जानते ही है, कितनी फिल्म्स में जीती, क्या तीसरा स्थान आया या "जीती" कुछ वेरीफाई नहीं किया और बस रिपोर्टिंग कर दी। जो विदेशी लोग उत्सुकता में इनकी जीती हुयी फिल्म्स देखेगें तो उनपर भारत की क्या छवि पड़ेगी.... की ऐसी रद्दी प्रतिभायें भरी है इंडिया में? या इनकी अवार्ड विनिंग प्रोफाइल को देख कई लोग अच्छे-सच्चे कलाकारों का काम इनके अक्षम पर चमक-दमक वाले हाथो में दे देंगे। कई बूढ़े हो चुके प्रतिभा से धनि कलाकार तक कभी सम्मान नहीं पाते और ऐसे लोग अपने लिए सम्मान खरीद या बना लेते है। किसी चमकती चीज़ से आँखों में धुंधलका ना छाने दें। देखें-परखें-समझे…तब माने!
- मोहित शर्मा (ज़हन)
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