*) - हँसी तो फसी (2014)
हँसी तो फसी, नयी फिल्मों में से कुछ एक मे है जो कोशिश मुझे पसंद आयी। प्रेम कहानी मे किरदार है वो इसको थोड़ा हटकर बनाते है। सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति चोपड़ा की परदे पर जोड़ी आकर्षक है। जहाँ सिद्धार्थ का किरदार सीधा सा है फिल्म की असल धुरी और जान है परिणीति का परिवर्तनशील किरदार। अदा शर्मा के पास करने को ज़्यादा कुछ था नहीं। हालाँकि, कहानी में काफी गुंजाईश थी जो पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो पायी। संगीत कर्णप्रिय है। मेरे लिए हालिया समय की बेहतरीन फिल्मो मे से एक।
रेटिंग - 7.5/10
------------------
*) - मैडागास्कर फिल्म सीरीज़ (2005, 2008, 2012)
एनीमेशन की तरफ हमेशा से मेरा रूझान रहा है पर अक्सर ऐसा होता था की जो बातें, कहानियाँ मुझे अच्छी लगती थी वो मेरे घरवालो, दोस्तों की पसंद नहीं बन पाती। फिर किस्मत से एक बार मैडागास्कर (2005) घरवालो के साथ देखी। इस बार यह सभी ने पसंद की। शेर एलेक्स से लेकर किंग जूलियन सब कुछ इतना दिलचस्प उसपर एक लाजवाब कहानी जिसमे अमरीकी चिड़ियाघर के 4 स्टार जानवर एक अंजानी जगह पहुँच जाते है। दूसरा भाग उतना रोचक नहीं था पर फिर भी मज़बूत नींव के दम पर कहानी में एलेक्स के अतीत के राज़ खुलते है। इस श्रृंखला की निकटतम कड़ी में चिड़ियाघर-जंगल के बाद सर्कस को लाया गया, जिसमे इन प्राणियों को देखकर आनंद बढ़ गया।
वैसे पहले भाग को अधिक रेट करूँगा पर अभी पूरी श्रृंखला को रेट करना हो तो 7/10 अंक।
-------------------
*) - हमशकल्स (2014)
साजिद खान एक समझदार इंसान और कलाकार है। यह उनके पुराने टीवी शोज़ देख कर आप अंदाज़ा लगा सकते है। फ़िल्मकार के रूप में वो सिर्फ पैसो को महत्व देते लगते है जिस वजह से पहले की तरह यहाँ उनकी प्रतिभा नहीं दिखती। दिखता है तो बेवकूफाना दृश्यों, संवादों और भ्रम में इधर उधर भागते किरदार। इसपर भी उनके कुछ फिक्स फंडे जैसे गे किरदार, अमीर खानदान, कन्फ्यूजन से बदली स्थिति, यहाँ तक की एक जैसे गाने (ट्रेडमार्क परोक्ष रूप से दर्शाया जाता है ना की इस तरह) आदि। वैसे फॉर अ चेंज पहले के प्रयासों से इस कहानी में थोड़ा दिमाग लगाया गया है जो लाज़मी है 3X3 ट्रिपल रोल के साथ। अभिनेत्रियों को भी अधिक फ़ुटेज देने में साजिद नाकाम रहते है। राम कपूर और सतीश शाह ने प्रशंषनीय काम किया है। संगीत औसत आया-गया रहेगा।
रेटिंग - 4.5/10
---------------
यह साली ज़िन्दगी (2011)
2010 कई लोगो का सवाल था की फ्रेंच सरकार ने नाईटहुड की उपाधि क्यों दे दी सुधीर मिश्रा को। इनमे ज़्यादातर वो थे जिन्होंने सुधीर जी के लिखे बनाये सिनेमा को बस सुना, कभी देखा नहीं। दुर्भाग्य से इन लोगो की सँख्या बहुत अधिक है। बताते चलें की सुधीर जी को 3 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिल चुके है। यह साली ज़िन्दगी में एक नहीं बल्कि कई गूढ़ कथाएँ आपस में पिरोयी गयी है। समाज की नब्ज़ पकड़ बनायीं गयी फिल्म। अपराध, अपहरण, प्रेम, कुर्बानी की अनदेखी तस्वीरें पेश की गयी है। पर फिर जब सब कुछ सुधीर मिश्रा अंदाज़ में है तो तो त्रुटियाँ या कमियां भी उन्ही के स्टाइल वाली है यानी तेज़ रफ़्तार कहानी में किरदारों और कहानी के पहलुओं को ज़रुरत भर का भी ना समझाना। इरफ़ान खान, चित्रांगदा सिंह, प्रशांत, यशपाल कथानक में जान डाल देते है वहीँ अरुणोदय और अदिति एक बड़े हिस्से में व्यर्थ गये।
रेटिंग - 6.5/10
No comments:
Post a Comment